Friday, November 26, 2010

शैतानियत

My first attempt at Hindi "poetry," if you can call it so.

n00bness, possibly, but who gives a bull?



एक बार

शैतानों के सरदार ने

सभी शैतानों को बुलाया.

उसकी आँखें लाल

चेहरे का जलाल

देखकर

हर शैतान घबराया!

शैतान गुर्राया

"काफिरों!

क्या तुम लोग

इस कदर

डर गए हो

इंसान से?"

कुछ क्षण की

शान्ति के बाद

सहमा हुआ एक बूढा शैतान

बोला

"हाँ सरदार,

हम हार गए हैं

इंसान हमसे भी

बाज़ी मार गए हैं.

हम कांपने लगे हैं

आंसुओं और आँहों से.

इंसान डरता नहीं मगर

बड़े बड़े गुनाहों से.

धर्म और ईमान

सबका अर्थ बदल गया है

इंसान हमसे बहुत

आगे निकल गया है.

हम तो सिर्फ अपना

खौफ दिखाते हैं

पर इंसान तो

इंसान को ही खा जाते हैं!

सही और गलत

सबका अर्थ बदल गया है

इंसान हमसे बहुत

आगे निकल गया है.

बस सरदार

हमसे अब ये

और बर्दाश्त किया नहीं जाता.

सच्चाई को सामने देखकर भी

उसे अनदेखा किया नहीं जाता.

हम अब इस तरह

शांत नहीं बैठने वाले

अपने अस्तित्व के खात्में का

मूकदर्शक नहीं बनने वाले.

हमें भी अब

कुछ करना होगा.

शैतानियत की हद से

गुज़रना होगा.

हमें भी अब

इंसान बनना होगा.

हाँ सरदार, हमें भी अब

इंसान बनना होगा.

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